बाहुबली: द एपिक' का तूफान जारी: 10 साल बाद भी क्यों हिल रहे हैं बॉक्स ऑफिस?
: 'बाहुबली: द एपिक' का तूफान जारी: 10 साल बाद भी क्यों हिल रहे हैं बॉक्स ऑफिस?
दिनांक: 5 नवंबर, 2025
सिंहासन के लिए लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है!
एस.एस. राजामौली की 'बाहुबली' एक बार फिर थिएटर्स में है, लेकिन इस बार एक बिल्कुल नए और भव्य रूप में— 'बाहुबली: द एपिक' (Baahubali: The Epic) बनकर। यह कोई पुरानी फिल्म की री-रिलीज नहीं है, यह 'बाहुबली: द बिगिनिंग' और 'बाहुबली: द कन्क्लूजन' दोनों फिल्मों का एक संयुक्त (combined) और री-कट वर्जन है।
और नतीजा? 10 साल बाद भी, माहिष्मती का जादू फीका नहीं पड़ा है। 'बाहुबली: द एपिक' बॉक्स ऑफिस पर दोबारा तूफान मचा रही है।
बॉक्स ऑफिस पर फिर से 'बाहुबली' का डंका
खबरों के मुताबिक, 'बाहुबली: द एपिक' ने री-रिलीज होते ही बॉक्स ऑफिस पर धूम मचा दी है। इसने अपने पहले सप्ताहांत (weekend) में ही 27 करोड़ रुपये से ज़्यादा का कलेक्शन कर लिया है। यह आँकड़े किसी भी री-रिलीज फिल्म के लिए बहुत बड़े हैं।
दिलचस्प बात यह है कि इसने 'ये जवानी है दीवानी' और 'इंटरस्टेलर' जैसी बड़ी फिल्मों के री-रिलीज कलेक्शन रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ दिया है। यह साफ दिखाता है कि प्रभास (बाहुबली) और राजामौली का क्रेज दर्शकों के सिर चढ़कर बोल रहा है।
'द एपिक' में क्या है खास?
'बाहुबली: द एपिक' लगभग 3 घंटे 45 मिनट लंबी है। यह उन दर्शकों के लिए एक ट्रीट है जो पूरी कहानी को एक साथ, बिना रुके, बड़े पर्दे पर अनुभव करना चाहते हैं। इसमें कुछ नए सीन और अनदेखे फुटेज होने की भी खबरें हैं, जो फैन्स के उत्साह को और बढ़ा रही हैं।
10 साल बाद भी क्यों कायम है जादू?
आखिर क्यों 'बाहुबली' आज भी इतनी लोकप्रिय है?
* भव्य विजुअल्स (VFX): राजामौली ने माहिष्मती का जो साम्राज्य बनाया, जो झरने और युद्ध के दृश्य दिखाए, वे आज भी किसी हॉलीवुड फिल्म को टक्कर देते हैं।
* दमदार किरदार: अमरेंद्र बाहुबली का त्याग, भल्लालदेव की क्रूरता, शिवगामी का दमदार शासन, देवसेना का स्वाभिमान और कटप्पा की वफादारी... हर किरदार आज भी लोगों के ज़ेहन में ताज़ा है।
* "कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा?": यह सिर्फ एक सवाल नहीं था, यह एक राष्ट्रीय रहस्य बन गया था जिसने दो साल तक लोगों को बांधे रखा।
* पैन-इंडिया क्रांति: 'बाहुबली' वह पहली फिल्म थी जिसने सही मायनों में 'पैन-इंडिया' शब्द को लोकप्रिय बनाया। इसने साबित किया कि कहानी दमदार हो तो भाषा कोई बाधा नहीं है। इसी के नक्शेकदम पर KGF, RRR और पुष्पा जैसी फिल्में चलीं।
निष्कर्ष
'बाहुबली: द एपिक' का दोबारा सफल होना सिर्फ नॉस्टैल्जिया (पुरानी यादें) नहीं है। यह इस बात का सबूत है कि एक अच्छी कहानी, दमदार निर्देशन और बेहतरीन परफॉरमेंस कभी पुरानी नहीं होती। अगर आपने यह एपिक बड़े पर्दे पर मिस कर दिया था, तो यह आपके लिए एक शानदार मौका है।

टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें